मोटर दुर्घटना दावे में मुआवजे की राशि के निर्धारण के लिए माननीय सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय।

सरला वर्मा बनाम दिल्ली परिवहन निगम (2009) के मामले में भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने मोटर दुर्घटना दावे (Motor Accident Claims) में मुआवजे की गणना के लिए एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया था। इस फैसले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने मुआवजे की राशि का निर्धारण करने के लिए एक मानक तरीका अपनाया, जिसमें कुछ बुनियादी तत्व शामिल थे, जैसे कि पीड़ित की आय, आश्रितों की संख्या, और भविष्य के संभावित वेतन वृद्धि।



इस मामले में, माननीय अदालत ने निम्नलिखित मुख्य बिंदुओं को स्पष्ट किया:

1. गुणांक (Multiplier) का निर्धारण: अदालत ने विभिन्न आयु समूहों के लिए एक निश्चित गुणांक तालिका को स्थापित किया। उदाहरण के लिए, एक कम उम्र के व्यक्ति के लिए उच्च गुणांक होगा क्योंकि उसे लंबे समय तक कमाने की संभावना होती है।


2. कटौती का मानक: माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी निर्धारित किया कि आय का एक निश्चित प्रतिशत आश्रितों की संख्या के आधार पर कटौती के लिए तय किया जाएगा। उदाहरण के लिए, यदि आश्रितों की संख्या अधिक है तो कटौती कम होगी।


3. भविष्य की संभावनाओं का ध्यान: अगर पीड़ित की उम्र कम है और उसके करियर में तरक्की की संभावना है, तो इसे भी मुआवजे की गणना में जोड़ा जाएगा।



इस फैसले के बाद, "सरला वर्मा फार्मूला" मोटर दुर्घटना दावों में मुआवजे की गणना के लिए एक मानक बन गया, जिसे भारत में विभिन्न अदालतों ने व्यापक रूप से अपनाया है।


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