गेहूं न केवल भारतीय किसानों के लिए आय का स्रोत है, बल्कि यह भारत की खाद्य सुरक्षा में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारत में गेहूं की खेती का क्षेत्रफल, उत्पादन क्षमता, और इसे प्रभावित करने वाले कारक इस लेख के प्रमुख बिंदु हैं। भारत में गेहूं की खेती रवी सीजन में की जाती है।
1. गेहूं का परिचय
गेहूं (Wheat) एक प्रमुख अनाज है जो भारतीय जनसंख्या के लिए एक मुख्य खाद्य स्रोत है। इसका वैज्ञानिक नाम ट्रिटिकम एस्टिवम (Triticum aestivum) है। इसमें प्रमुख रूप से कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, और अन्य आवश्यक पोषक तत्व होते हैं, जो इसे मानव स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभदायक बनाते हैं। गेहूं का उपयोग आटा, दलिया, पास्ता, बिस्किट, और कई अन्य खाद्य पदार्थों में किया जाता है।
2. भारत में गेहूं की खेती का इतिहास
भारत में गेहूं की खेती का इतिहास हजारों साल पुराना है। सिंधु घाटी सभ्यता के दौरान भी गेहूं की खेती के प्रमाण मिलते हैं। आजादी के बाद, भारतीय कृषि में बड़े बदलाव हुए, और 1960 के दशक में हरित क्रांति के कारण गेहूं का उत्पादन काफी बढ़ा।
हरित क्रांति ने गेहूं की नई किस्मों का विकास किया, जिनसे उत्पादकता में भारी वृद्धि हुई। यह भारत की खाद्य सुरक्षा में मील का पत्थर साबित हुआ। सरकारी खरीद के लिए गेहूं का रेट सरकार तय करती है। भारत सरकार व राज्य सरकारें गेहूं बीज पर सब्सिडी भी देते हैं।
3. भारत में गेहूं की खेती का क्षेत्रफल और उत्पादन
भारत में लगभग 30 मिलियन हेक्टेयर भूमि पर गेहूं की खेती होती है। प्रमुख गेहूं उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, और बिहार हैं। उत्तर भारत में इसकी खेती सबसे अधिक की जाती है, क्योंकि यहाँ की जलवायु और मिट्टी इसके अनुकूल है।
उत्पादन क्षमता: भारत गेहूं का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। 2021-22 में, भारत में लगभग 106 मिलियन टन गेहूं का उत्पादन हुआ। पंजाब, हरियाणा, और उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा उत्पादन होता है, क्योंकि इन राज्यों में सिंचाई की सुविधाएं अच्छी हैं।
4. गेहूं की खेती के लिए आवश्यक जलवायु और मिट्टी
गेहूं की खेती के लिए शीतकालीन जलवायु अनुकूल होती है, और यह मुख्यतः रबी फसल के रूप में उगाई जाती है। गेहूं के अच्छे उत्पादन के लिए निम्नलिखित जलवायु और मिट्टी की आवश्यकताएँ होती हैं:
जलवायु: गेहूं की फसल ठंडे मौसम में उगाई जाती है। इसकी बुवाई का समय अक्टूबर से नवंबर के बीच होता है, और कटाई का समय मार्च से अप्रैल तक होता है। तापमान 10-25 डिग्री सेल्सियस तक होने पर यह अच्छी तरह से बढ़ता है।
मिट्टी: गेहूं के लिए दोमट और बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है। इसके लिए मिट्टी का पीएच मान 6-7 होना चाहिए।
5. गेहूं की उन्नत किस्में
भारत में गेहूं की कई उन्नत किस्में विकसित की गई हैं, जिनमें से कुछ मुख्य किस्में निम्नलिखित हैं:
एचडी 2967: यह उत्तर भारत के लिए उपयुक्त किस्म है और इसकी उत्पादकता अधिक होती है।
एचडी 3086: इस किस्म में रोग प्रतिरोधक क्षमता होती है और यह पंजाब व हरियाणा के लिए बेहतर है।
एचडी 2189: यह मध्य प्रदेश के लिए उपयुक्त है और इसे कम सिंचाई की आवश्यकता होती है।
पंजाब गेहूं 343: यह पंजाब में उगाई जाती है और तेजी से तैयार होती है।
इन किस्मों का विकास भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) और अन्य कृषि अनुसंधान संगठनों द्वारा किया गया है। उन्नत किस्मों का चयन करके किसान अच्छी उपज प्राप्त कर सकते हैं।
6. गेहूं की खेती में प्रमुख तकनीकें और पद्धतियाँ
गेहूं की खेती में उत्पादकता बढ़ाने के लिए आधुनिक कृषि तकनीकों का प्रयोग किया जा रहा है। निम्नलिखित प्रमुख तकनीकें और पद्धतियाँ हैं:
जीरो टिलेज विधि: इस विधि में जुताई की आवश्यकता नहीं होती, जिससे समय और लागत की बचत होती है। यह तकनीक मिट्टी की संरचना को बनाए रखने में सहायक होती है।
उर्वरकों का संतुलित उपयोग: गेहूं की फसल को बेहतर उत्पादन देने के लिए नाइट्रोजन, फास्फोरस, और पोटाश का संतुलित उपयोग आवश्यक होता है।
संकर बीज: संकर बीजों का उपयोग उत्पादकता बढ़ाने में सहायक होता है। ये बीज रोग प्रतिरोधक होते हैं और जल्दी बढ़ते हैं।
ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई: इस विधि से जल की बचत होती है और पौधों को पर्याप्त नमी मिलती है।
7. गेहूं की खेती में चुनौतियाँ
भारत में गेहूं की खेती कई चुनौतियों का सामना कर रही है:
जलवायु परिवर्तन: तापमान में वृद्धि और अनियमित वर्षा से गेहूं की उपज पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।
भूमि की गुणवत्ता में कमी: रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग से मिट्टी की गुणवत्ता में कमी आ रही है।
सिंचाई की समस्याएँ: कई क्षेत्रों में सिंचाई की सुविधाएं सीमित हैं, जिससे सूखे की स्थिति में फसल खराब हो सकती है।
कृषि की घटती भूमि: औद्योगिकीकरण और शहरीकरण के कारण कृषि योग्य भूमि का क्षेत्रफल घट रहा है।
8. सरकार की सहायता और योजनाएँ
भारत सरकार ने गेहूं की खेती को बढ़ावा देने और किसानों की आय में वृद्धि के लिए कई योजनाएँ चलाई हैं। कुछ प्रमुख योजनाएँ निम्नलिखित हैं:
प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना (PM-KISAN): इसके तहत छोटे और सीमांत किसानों को आर्थिक सहायता दी जाती है।
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY): इस योजना के अंतर्गत किसानों को फसल बीमा सुविधा मिलती है, जिससे प्राकृतिक आपदाओं से फसल को सुरक्षा मिलती है।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (NFSM): इस योजना के तहत गेहूं के उत्पादन में सुधार के लिए आधुनिक तकनीकों और कृषि प्रथाओं को बढ़ावा दिया जाता है।
कृषि उत्पादों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP): सरकार गेहूं के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित करती है, जिससे किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य मिलता है।
9. भारत में गेहूं की खेती का भविष्य
भारत में गेहूं की खेती का भविष्य काफी उज्जवल है, लेकिन इसके लिए कुछ कदम उठाने आवश्यक हैं। बेहतर उत्पादकता के लिए किसानों को जैविक खेती की ओर बढ़ना चाहिए और उन्नत किस्मों का चयन करना चाहिए। साथ ही, किसानों को कृषि तकनीक के बारे में जागरूक किया जाना चाहिए, जिससे वे कम लागत में अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकें। भारत में पंचवर्षीय योजनाओं द्वारा कृषि को बढ़ावा दिया गया है तथा हरित क्रांति के द्वारा गेहूं के उत्पादन में भारी वृद्धि हुई है तथा गेहूं के उन्नत प्रजाति के बीज विकसित किए गए हैं।
निष्कर्ष
भारत में गेहूं की खेती किसानों की आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत है और यह देश की खाद्य सुरक्षा का आधार है। हालांकि, जलवायु परिवर्तन, भूमि की गुणवत्ता में कमी, और सिंचाई समस्याओं जैसी चुनौतियाँ मौजूद हैं, लेकिन आधुनिक तकनीकों और सरकारी योजनाओं की सहायता से इन पर काबू पाया जा सकता है। अगर सही कदम उठाए जाएं, तो भारत में गेहूं की खेती और अधिक उन्नति कर सकती है और देश को खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाकर इसके निर्यात से भारी मात्रा में विदेशी मुद्रा कमा सकती है। वर्तमान समय में भारत खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर हो चुका है तथा भारी मात्रा में अन्न का निर्यात कर रहा है, जिसमें गेहूं भी शामिल है।
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