मेरे साथ भी जीवन में एक बार ऐसी घटना घटित हुई जिसको याद कर आज भी होठों पर बरबस ही हंसी आ जाती है तथा अपने किशोरावस्था का रंगीन जमाना याद आ जाता है।
कितने सुंदर दिन थे, हम लोग कल्पना लोक में जीते थे तथा दिन में ही रंगीन सपने अक्सर देखा करते थेे। वह उम्र ऐसी थी जब बच्चे में परिपक्वता ना के बराबर होती है, जहां पर 4 बच्चों ने मिलकर किसी काम के लिए हामी भर दी, तो सभी बच्चेे उस कार्य को करने के लिए उतावले हो जाते हैं। उनमें ज्यादा सोचने की शक्ति नहीं होती, ना ही वह किसी की बात सुनना चाहते हैं।
ऐसेे ही एक घटना मेरे साथ घटी, जिसको याद करके अब भी होठों पर हंसी आ जाती है। काश वह दिन फिर से वापिस आ पाते।
जब पिक्चर हॉल में छात्रों का अध्यापकों से हुआ आमना सामना
यह बात उन दिनों की है जब मैं नौवीं क्लास में पढ़ता था। हमारा स्कूल घर से लगभग 10 किलोमीटर दूर था, क्योंकि हम लोग एक गांव में रहते थे और गांव से स्कूल जाने के लिए पहले हमें लगभग ढाई किलो मीटर पैदल चलना पड़ता था और उसके बाद हमें बस का इंतजार करना पड़ता था। बस आने पर हम उससे बस स्टॉप पर उतर जाते थे, और वहां से पैदल ही स्कूल में चले जाते थे।
यह वाकया जब हुआ उस समय वर्षा ऋतु चल रही थी। एक दिन रात को भारी बरसात हुई और सुबह हमारे मम्मी पापा ने मना किया कि बेटा आज स्कूल मत जाओ, आज जैसा मौसम है, पूरे दिन ही भारी बरसात हो सकती हैं। मगर हम भी अपने समय के महानतम ज़िद्दी थे। हमने कहा अगर हम स्कूल नहीं गए तो हमारी आज की पढ़ाई खराब हो जाएगी, लिहाजा हम सभी की बातों को दरकिनार करते हुए सिर पर बरसाती डालकर पैदल ही एक वीर योद्धा की तरह स्कूल की तरफ चल दिए।
धुन के पक्के हम तमाम परेशानियों को झेलते हुए सफलतापूर्वक अपने ठिकाने यानी कि विद्यालय में पहुंच गए। उस दिन विद्यालय में ना के बराबर बच्चे आए हुए थे। प्रिंसिपल महोदय ने अन्य अध्यापकों के साथ गहन विचार विमर्श किया तथा स्कूल में उस दिन अत्यधिक बरसात होने के कारण तथा छात्रों के ना पहुंचने के कारण छुट्टी घोषित कर दी गई।
अब मेरे सामने एक नया धर्म संकट पैदा हो गया कि अब क्या किया जाए?
अगर अभी घर गए तो घर में भी पिटाई होना सुनिश्चित है, क्योंकि उन्होंने भी हमें आज स्कूल जाने के लिए मना किया था।
उलझनों में फंसा हुआ हमारा कोमल मन यह सोचने को मजबूर हो गया की जीवन में आई इस बड़ी विपत्ति से कैसे पार पाया जाए?
मन ही मन गहन मंथन करने के बाद मेरे दिमाग में एक बिजली कौंध गई, मेरे दिमाग में एक शैतानी आईडिया आ चुका था, जिससे सांप भी मर जाता और लाठी भी ना टूटे वाली कहावत चरितार्थ हो सकती थीं।
अपने ऊपर आई इस अनायास विपत्ति से निकलने का मेरे कोमल मन में एक शैतानी आइडिया आ चुका था। मैंने फैसला किया कि आज पिक्चर हॉल में पिक्चर ही देख ली जाए, जेब में इतने पैसे तो थे की पिक्चर की टिकट आ जाएगी तथा खाने के लिए भी कुछ पकोड़े आदि का भी इंतजाम हो जाएगा। अपने दिमाग में आए इस धांसू विचार को अमली जामा पहनाते हुए मैंने स्कूल में पहुंचे अपने दोस्तों से इस अनमोल प्रस्ताव को पेश किया। अपनी तरह के इस अनोखे प्रस्ताव को पाकर मेरे दोस्तों का मन गार्डन गार्डन हो गया, और हमारे कदम पिक्चर हॉल की तरफ चल पड़े।
पिक्चर हॉल मेरे स्कूल से लगभग डेढ़ किलोमीटर दूर था, उस समय भी बरसात हो रही थी। मैं पूरे आत्मविश्वास से अपने ऊपर बरसाती डालकर अपने दोस्तों के साथ बरसात में ही पिक्चर हॉल की तरफ अत्यंत ही तेजी से चल पड़ा। उस समय हमारे कदमों में इतनी तेजी थी कि अगर हम ओलंपियाड में भाग लेते तो हमें गोल्ड मेडल मिल सकता था।
भागते भागते हम लोग पिक्चर हाल में पहुंंचे तो पिक्चर का समय हो चुका था। जल्दी ही पिक्चर की टिकट खरीदी और अत्यंत तेजी से picture hall के गेट की तरफ भागे ताकि पिक्चर शुरू ना हो जाए।
हमे मालूम नहीं था की पिक्चर हॉल में एक बड़ी आपदा हमारे ऊपर आने वाली है, जोकि हमारे सभी उमंग तथा उल्लास पर पानी फेर देगी।
जैसे ही हमने पिक्चर हॉल मैं प्रवेश किया तो हम सभी दोस्तों पर अनायास ही बिजली टूट पड़ी । हमे दिन में तारे नजर आ गए । हमारी आंखोंं के सामने अकल्पनीय दृश्य था, क्योंकि हमारे स्कूल के सभी अध्यापक भी स्कूल की छुट्टी करने के बाद पिक्चर देखने आ गए थे। एक क्षण के लिए सभी अध्यापक तथा हम सभी छात्र हक्के बक्के रह गए।
कुछ क्षणों तक तो अध्यापकों को भी यह समझ नहीं आया की ऐसी विषम परिस्थितियों में क्या करना चाहिए?
कुछ समय तक उलझन में रहने के बाद हमारे अध्यापक कुछ संभले तथा उन्हें अपनी गरिमा तथा प्रतिष्ठा का ध्यान आया, उन्होंने सभी बच्चों को एक लाइन में खड़ा कर कागज निकालकर सबके नाम नोट कर लिए और सब ने अलग-अलग सीट पर बैठ कर पिक्चर देखी, लेकिन हमारा सारा उत्साह तथा उमंग काफूर हो चुकी थी। मरे हुए दिल से हमने फिल्म देखी और पॉपकॉर्न भी खाए।पिक्चर खत्म होने के बाद हम सबसे पहले पिक्चर हाल से बाहर निकले ताकि अध्यापकों की नजर में ना आने पाए।
सुबह प्रार्थना के वक्त प्रिंसिपल द्वारा हमें सम्मानित किया गया।
अगले दिन सुबह डरते डरते सभी बच्चे विद्यालय पहुंचे तथा तथा बैल बजने पर सभी बच्चे प्रार्थना करने के लिए लाइन में लग गए। हमारा डर थोड़ा कम हो गया था, क्योंकि अभी तक किसी भी अध्यापक ने हमें कुछ नहीं कहा था। मगर हमें मालूम नहीं था की यह तूफान आने से पहले की खामोशी हैै।
प्रार्थना खत्म होने केेे बाद एक अध्यापक ने जेब मेंं से वह कागज निकाला, जिसमें उन्होंने पिक्चर हाल में पिक्चर देखनेेे वाले बच्चों के नाम नोट किए थे। हर बच्चेे को नाम से बुलाकर उन्हें अलग लाइन में खड़ा कर दिया गया।
अगली कार्रवाई के लिए पूरी जिम्मेदारी हमारेे Principal महोदय ने निभाईं, उनकेे हाथ में एक छड़ी थी, उन्होंने छड़ी का भरपूर उपयोग बच्चों पर किया, और अंत में इसका परिणाम यह निकला की बच्चों की भी दुआएं रंग लाई तथा छड़ी टूट गई।
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