दोस्तों,
जैसा कि मैं अपनी पूर्व की कई पोस्ट में अपने बारे में विस्तार से बता चुका हूं, कि किस तरह मुझे कम उम्र में ही अपने घर से लगभग 250 किलोमीटर दूर यमुनानगर में जाकर अकेले ही दुकान करनी पड़ी थी। उस वक्त मेरी उम्र लगभग 15 वर्ष थी। जिंदगी के तमाम झंझावात को झेलते हुए मेरी जिंदगी शैने शैने आगे बढ़ रही थी। इस दौरान मेरे कुछ हम उम्र दोस्त भी बन गए थे। एक दोस्त उस दौरान आईटीआई में मैकेनिकल ड्राफ्ट्समैन का डिप्लोमा कर चुका था तथा उस समय वह करनाल के पास इंद्री नामक जगह पर स्थित पॉलिटेक्निक में मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था। वह मेरा बहुत ही घनिष्ट मित्र था। हमें एक दूसरे की सभी बातें पता होती थी तथा हम अपने सुख-दुख आपस में बांटते थे । वह वहां इंद्री में पॉलिटेक्निक में हॉस्टल / छात्रावास में रहता था तथा छुट्टी वाले दिन वापस आ जाता था। उसका घर मेरी दुकान से लगभग 500 मीटर की दूरी पर था। रात को लगभग 10:00 बजे हम दुकान बंद करके घूमने निकल जाया करते थे।
जैसे की जवानी में हर एक को एक रोग लग जाता है जिसे आमतौर पर प्यार का रोग यानि मोहब्बत भी कहते हैं। मोहब्बत की कसम यह एक बहुत ही भयानक रोग है। जिसमें इंसान का जीवन ही बदल जाता है। मेरा वह दोस्त जिसका सही नाम तो उसकी मोहब्बत की गोपनीयता बनाए रखने के लिए मैं नहीं बताऊंगा। मगर आप उसका नाम जसवीर मान ले।
जसवीर के बराबर वाले घर में ही उनकी कोई रिश्तेदार कुंवारी लड़की जो कि लगभग 17 वर्ष की थी, रहती थी। वह उनकी रिश्तेदारी में ही आती थी। ना जाने कब और कैसे उन दोनों को आपस में प्यार हो गया और प्यार का बुखार उनके सर पर चढ़कर बोलने लगा। मेरे दोस्त का यह राज मेरे अलावा कोई भी नहीं जानता था। कुछ समय बाद वह लड़की वापस अपने घर चली गई, उसका घर यमुनानगर से लगभग 75 किलोमीटर दूर हिमाचल में था तथा उसका गांव पहाड़ी क्षेत्र में आता था।
जिगरी दोस्त का प्रेम पत्र पहुंचने के लिए मुझे फेरी वाले का रूप धारण करना पड़ा
मेरे जिगरी दोस्त जसवीर की मोहब्बत उससे बिछड़ कर दूर हो गई थी और वह अपने मोहब्बत में बेइंतेहा तड़प रहा था। हद से ज्यादा दीवाना हो गया था, समझ नहीं पा रहा था कि वह उसे कैसे मिले?
कैसे अपना संदेश अपना प्रेम पत्र उस तक पहुंचाये?
उसकी अधीनता और बेचैनी को देखते हुए मेरा मन भी अत्यंत ही व्याकुल हो जाता था। कमबख्त जवानी चीज ही ऐसी होती है की अच्छे भले इंसान की सोचने समझने की शक्ति खत्म हो जाती है। जवानी के जोश में दोस्त की dosti की खातिर मैंने अपने दोस्त का प्रेम पत्र उसकी प्रेमिका तक पहुंचने का बीड़ा उठाया और मैंने अपनी दोस्ती निभाते हुए एक योजना बनाकर फेरीवाला का रूप धरकर साइकिल से दोस्त की प्रेमिका के गांव में जाने का दृढ़ निश्चय कर लिया।
फेरीवाला का रूप धरकर दोस्त की मोहब्बत की खातिर मैंने अपना जिंदगी का सफर साइकिल से शुरू किया।
मैंने दोस्त को उसकी प्रेमिका के लिए पत्र लिखने को कहा। उससे पत्र लिखवा कर रात को ही मैंने दो बैग समान अपनी दुकान का सामान लेकर पैक किया। उस सामान में कंधे, नेल पॉलिश, बिंदी आदि मनियारी का समान था, जो की मेरी दुकान का ही था। मैंने कुर्ता पजामा पहने और सुबह 4:00 बजे ही अपनी दुकान जो की यमुनानगर में थी, से साइकिल से ही हिमाचल के लिए यात्रा शुरू कर दी।
उपरोक्त यात्रा एक साइड की लगभग 75 किलोमीटर थी। जब मैं वहां से विदा हुआ तो मेरे दोस्त ने भीगी आंखों से मुझे अपने गले लगा लिया। दोनों को यह अच्छी तरह से पता था कि अगर गलती से भी कोई चूक हो गई तो जबरदस्त पिटाई से कोई भी मुझे बचा नहीं पाएगा। मगर दोस्त की दोस्ती की खातिर उस दिन मुझे वह भी मंजूर था। मेरी साइकिल पर लगभग 50 किलो वजन लदा हुआ था और मैं साइकिल से रवाना हो गया। गर्मियों के दिन थे, मुझे खूब पसीना आ रहा था। लगभग 20 किलोमीटर की पहाड़ों पर भी चढ़ाई थी, मगर मेरे फौलादी हौसले आज हर कीमत पर अपना सफर कामयाबी से जारी रखे थे। मैं लगभग 12:00 बजे दोस्त की प्रेमिका के घर के गांव में पहुंच गया था।
दोस्त की प्रेमिका के घर में पहुंचकर खाना खाया।
मैं गांव में पहुंचकर अब लोगों के घरों में जाकर आवाज देकर सामान बेचने लगा। हकीकत में मैं टोह ले रहा था की मेरे दोस्त की प्रेमिका का घर कौन सा है। फिर मैं किसी के घर में थोड़ी देर चारपाई पर जानबूझकर बैठ गया, और घर की औरतों से बातें करने लगा। बातों ही बातों में मैंने जानबूझकर बताया कि मैं इतनी दूर से वहां से यमुनानगर से कि उसे जगह से आया हूं। तब वह बोली कि हमारे पड़ोस के घर से भी एक लड़की वहीं पर रहती थी, अभी कुछ दिन पहले ही आई है। मैंने उनका नाम पूछा तो वही नाम निकला। अब मेरा उत्साह अपने चरम पर पहुंच गया था तथा मुझे यह यह महसूस हुआ कि मैं अपनी मंजिल पर पहुंच चुका हूं। मैंने उनसे कहा कि उनको तो मैं अच्छी तरह से जानता हूं, मैं उनके घर भी हो गया आता हूं। मैं तुरंत अपनी साइकिल लेकर उनके बताए घर की तरफ रवाना हो गया।
सीधा ही उनके घर पर गया, घर पर मेरी किस्मत ने मेरा साथ दिया, वहां पर वह लड़की और उसकी मां दोनों ही मौजूद थी। मैंने उनको तुरंत ही अभिवादन किया और बताया कि मैं वहां से आया हूं। यह सुनकर ही वह दोनों खुश हो गई और बोली की यह तुम्हारा घर भी है। मैंने बताया कि मैं उन्हें जानता हूं। उन्होंने पूरे आदर से मुझे चारपाई पर बिठाया और लड़की की मम्मी ने मुझसे कहा की हम खाना खिलाए बिना आपको नहीं जाने देंगे। मैं भी रुकने का बहाना ढूंढ रहा था और मुझे मुंह मांगी मुराद मिल गई थी। वह लड़की मेरे लिए पानी लेकर आई तो मैंने धीरे से अपने दोस्त का भेजा हुआ प्रेम पत्र उसको दिया और बोला कि यह जसवीर ने दिया है। उसने फुर्ती से वह पत्र अपनी मुट्ठी में दबा लिया तथा अंदर कमरे में चली गई। थोड़ी देर में उसकी मम्मी मेरे लिए खाना बना कर ले आई और बैठकर मुझे से काफी बातें करने लगी। बहुत ही अपनेपन का अहसास हो रहा था। थोड़ी देर बाद ही उसके मम्मी बर्तन लेकर चली गई और मेरे दोस्त की प्रेमिका मेरे लिए चाय बना कर ले आई थी। इस बीच उसने कमरे में एक प्रेम पत्र मेरे दोस्त के लिए भी लिख दिया था। उसने चुपके से वह प्रेम पत्र मुझे दे दिया, मैंने तुरंत ही संभाल कर अपने जेब में रख लिया। दोनों के चेहरे पर ही बड़े सुकून के और विजेता के भाव थे, वह बहुत प्रसन्न थी। अब मेरा मकसद पूरा हो चुका था और मैं तुरंत ही वापसी के लिए बेकरार हो गया था। मैं तुरंत खड़ा हुआ और अभिवादन करके वापसी के लिए निकल पड़ा।
वापसी में मैं लगभग 9:00 बजे रात को 150 किलोमीटर साइकिल का सफर करके अपनी दुकान पर पहुंचा। मेरा वह दोस्त बेकरारी से मेरे वापिस आने का इंतजार कर रहा था। मेरा शरीर थककर चूर हो चुका था। मैंने उसको उसकी प्रेमिका का पत्र सौंप दिया। पत्र खुला हुआ था, मगर मोहब्बत की कसम मैंने दोस्त की दोस्ती की खातिर उसको नहीं पड़ा था। उसने खुशी से मुझे बाहों में भर लिया और मेरे कंधे पर अपना सिर टिका दिया, उसकी आंखों में खुशी के आंसू थे। दोनों को ही अपार खुशी थी, जहां उसको यह खुशी थी कि उसका प्रेम पत्र उसकी प्रेमिका तक पहुंच गया और उसका जवाब भी आ गया और मेरा दोस्त भी उससे मिल आया, वही मुझे इस बात की खुशी और फखर था की मैं भी अपने दोस्त की मोहब्बत में उसके किसी काम आया और उसकी प्रेमिका से मिलने का सौभाग्य मुझे मिला।
वक्त ने हम दोस्तों को अलग कर दिया। आज मुझे उसे दोस्त से मिले हुए भी कई वर्ष हो गए हैं, मेरे पास उसे दोस्त का फोन नंबर भी नहीं है। मगर वह यादें वह दोस्ती आज भी सीने में जिंदा है और जब तक जीवन रहेगा, dosti की मधुर यादें सीने में रहेगी।
: आज की यह पोस्ट मेरे जिगरी दोस्त जसवीर को समर्पित।
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