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दोस्तों,
यह बात उस वक्त की है जब मैं कक्षा 6 का छात्र था और मेरी उम्र लगभग 10 वर्ष के आसपास थी। हमारे गांव में प्राथमिक विद्यालय था, जहां पर कक्षा 5 तक की पढ़ाई होती थी। उसके बाद गांव से लगभग 3 किलोमीटर दूर दूसरे गांव में जूनियर हाई स्कूल था। हमें प्रतिदिन 3 किलोमीटर पैदल ही चल कर स्कूल में पढ़ने के लिए जाना पड़ता था।
उस दौर में कोई थ्री व्हीलर, बस, वेन, तांगा आदि हमारे गांव में नहीं आता था। जब हम अपने स्कूल जाते थे तो घर से 3 किलोमीटर दूर स्कूल तक हमें दूर-दूर तक कोई भी प्राणी नजर नहीं आता था। निहायत ही सुनसान रास्ता था, लेकिन बच्चों के दिल दिमाग में डर नामक चीज नहीं होते थे, केवल एक अपवाद को छोड़कर।
उन दिनों भूत प्रेत आदि के बारे में बहुत ज्यादा चर्चाएं होती थी और ऐसा माना जाता था की भूत होते हैं। हमारे स्कूल के रास्ते में घर से 2 किलोमीटर दूर पर एक श्मशान घाट | shamshan ghat था। जहां पर निकलते हुए बच्चे बहुत ही डरते थे क्योंकि उनको ऐसा महसूस होता था की श्मशान घाट के मुर्दे कभी भी उठकर उनको पकड़ सकते हैं और श्मशान घाट में khatarnak bhoot होते हैं। bhoot khatarnak के बारे में सोच कर बच्चों के रोंगटे खड़े हो जाते थे तथा बच्चे शमशान घाट bhumi से लगभग 50 मीटर पहले ही अपनी आंखों पर हाथ रख लेते थे और प्रभु श्री राम के नाम की जपमाला राम राम करते हुए दौड़ लगा दिया करते थे और श्मशान की तरफ मुड़कर भी नहीं देखते थे। ऐसा विश्वास था की भूत से बचने के लिए यह काम श्मशान के टोटके हैं। वापसी में भी यही प्रक्रिया जारी रहती थी मगर मैं इन सबसे बेपरवाह आराम से धीरे-धीरे चलता हुआ मस्त मोला स्वभाव में आराम से जाता था तथा मुझे भूत से डर नहीं लगता था। भूत को बच्चे bhutiya dada भी कहते थे। स्कूल में बच्चे पेंसिल और पेंट से कई बार अपनी कॉपी में khatarnak bhoot ki picture बनाते थे। bhoot ki picture khatarnak दिखाई देती थी। बच्चों ने khatarnak bhutni के बारे में भी सुन रखा था।
जब मैंने शमशान भूमि में प्रवेश किया | jab maine shamshan bhumi mein pravesh kiya
जैसा कि मैं पूर्व में ही बता चुका हूं कि मैं बचपन से ही बहुत ही निडर और दबंग किस्म का इंसान रहा हूं। एक दिन स्कूल की छुट्टी के बाद स्कूल के सभी बच्चे वापिस गांव में अपने घर की तरफ जा रहे थे, तो रास्ते में फिर से हमें उपरोक्त श्मशान घाट भूमि के पास से होकर जाना था। मगर उस दिन सभी बच्चों को श्मशान में एक दिल दहलाने वाला मंजर दिखाई दिया। सभी बच्चों ने श्मशान घाट के मुर्दे को जलते हुए देखा। सभी बच्चों की उक्त मंजर को देखकर घिग्गी बंध गई और उन्हें विश्वास हो गया कि आज कोई ना कोई भूत तो उनको अवश्य ही पकड़ लेगा। सभी बच्चे अत्यंत ही दहशत में आकर श्मशान भूमि | shamshan bhumi के पास से निकलते हुए राम राम राम राम का जप बहुत जोर से कर रहे थे। मगर मैं आराम से मस्ती भरी चाल चलते हुए बहुत ही गहरी नजरों से उक्त जलती हुई श्मशान घाट के मुर्दे की चिता को देखते हुए धीरे-धीरे चल रहा था।
श्मशान घाट से मैंने बिखरे हुए सिक्के इकट्ठा किए | shmashan ghat se maine bikhre hue sikke ekattha kiye
शमशान भूमि | shamshan bhumi में मुझे अत्यंत ही भयानक मंजर दिखाई पड़ा, मैंने श्मशान घाट | shamshan ghat में सड़क से चलते चलते देखा की, जहां पर श्मशान घाट का मुर्दा जल रहा था उसके आसपास बहुत से पांच पैसे, 10 पैसे, दो पैसे, एक पैसे के सिक्के बिखरे पड़े थे, शायद वह किसी वृद्ध की लाश से जल रही थी।
अब मेरे दिमाग में एक शैतानी आईडिया घर कर चुका था। मैंने मौके का भरपूर फायदा उठाने का फैसला कर लिया और मैं बेधड़क होकर श्मशान घाट में प्रवेश कर गया और शमशान भूमि में श्मशान घाट के मुर्दे के आसपास बिखरे हुए सिक्के इकट्ठे करने लगा। दूर से ही सब बच्चे दहशत में आकर जोर-जोर से चिल्ला रहे थे कि आ जाओ नहीं तो भूत पकड़ लेगा, भूत पकड़ लेगा।
मगर मैं इन सब से बेपरवाह होकर अपने काम में मगन था। आराम से मैं सारे पैसे इकट्ठे कर जेब में डाल कर सीना चौड़ा कर चलता हुआ अपने साथियों की तरह बड़ा, जैसे कि आज मैं विश्व विजय करके आया हूं।
सभी दोस्तों को मैंने श्मशान भूमि से इकट्ठे हुए पैसों से चने खिलाए | sabhi doston ko Maine shmashan bhumi se ekatthe hue paison se chane khilayen
अब हम सभी बच्चे इकट्ठे होकर अपने गांव की तरफ बढ़ रहे थे। हमारा गांव अब भी लगभग 2 किलोमीटर दूर था, आज सभी बच्चों में मैं एक हीरो की तरह अलग ही दमक रहा था तथा मेरी चाल अत्यंत ही दमदार थी। जब हम लगभग 1 किलोमीटर आगे चले तो हमें एक साइकिल पर चने वाला आता हुआ दिखाई पड़ा, वह चने वाला पूर्व में दोपहर को स्कूल में चने बेचता था और उसके बाद वह गांव में जाकर चने बेचता था। उसके पास साइकिल पर मात्र एक पतीला | एक बर्तन जोकि लगभग 5 किलो के आसपास था होता था, उसमें ही चने होते थे। इसके अतिरिक्त प्याज और चटनी हाेती थी। मैंने चने वाले को रोक लिया और श्मशान घाट से इकट्ठा हुए पैसों से सभी दोस्तों को चने खिलाए। सभी दोस्त अत्यंत ही प्रसन्न हुए, मुझे बहुत-बहुत धन्यवाद किया कि आज मेरी मेहनत और दबंगई के कारण उन्हें चने खाने को मिले।
एक बच्चे की गद्दारी से घर पर हुई पिटाई | ek bacche ki gaddari se ghar per hui pitaai
अब सभी बच्चे क्योंकि मेरे गुनाह में शामिल हो चुके थे और क्योंकि उन पैसों से सभी बच्चों ने चने खा लिए थे, लिहाजा सभी को यह डर और आशंका सता रही थी कि,
घर में अगर इस घटना का पता चल गया तो क्या होगा?
सभी बच्चों ने आपस में इस गंभीर मुद्दे पर चर्चा की और सब ने मिलकर इसका एक लाजवाब हल निकाल लिया कि कोई भी बच्चा आज की घटना का घर में जाकर जिक्र नहीं करेगा।
मगर हमें क्या मालूम था कि हमारे बीच में ही एक घर का भेदी यानि विभीषण मौजूद है। कहावत भी है कि घर का भेदी लंका ढावे। हम आराम से सभी बच्चे सामान्य तौर पर ही घर पहुंचे और दैनिक नित्यचर्या में मगन हो गए। मगर एक बच्चा दिल से थोड़ा कमजोर था, उसको यह डर सता रहा था की आज उसने श्मशान घाट के पैसों से चने खाए हैं, लिहाजा उसको भूत आकर पकड़ सकता है। उसने घर जाकर रोते-रोते डर से अपनी मां को सब कुछ बता दिया। उस बच्चे की मां द्वारा हमारे घर आकर मेरी माता श्री को भी मेरे इस बहादुरी के कारनामे के बारे में विस्तार से बता दिया।
फिर उसके बाद जो रिजल्ट निकलना था, आप सोच ही सकते हैं। दे थप्पड़, दे मुक्का और दे डंडा। मगर मार खाते हुए एक बात का मुझे आभास हो रहा था कि मेरे माता जी को भी कहीं ना कहीं इस बात का डर सता रहा था कि, कहीं भूत मुझे भी आकर पकड़ ना ले।
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