यह जंगल यह नदिया यह अंबर पुकारे,
हे मानव अपने कुकर्मों से हमें बचा रे।
आज मानव के कुकर्मो तथा नासमझी तथा स्वार्थ पूर्वक रवैया अपनाने के कारण हालात बहुत ही ज्यादा खराब हो चुके हैं तथा खतरनाक स्टेज पर पहुंच चुके हैं। आज मानव की नादानियां इतनी बढ़ चुके हैं कि पूरी पृथ्वी | earth ही संकट में घिर चुकी है। पृथ्वी के ऊपर एक खतरनाक खतरा मंडरा रहा है। तथा उसके अस्तित्व पर ही खतरा आ चुका है। जाहिर सी बात है कि अगर bhumi पर संकट आया तो यह संकट सभी जीव जंतु, जंगलों, नदियों और मानव जाति पर भी अपना विनाशकारी प्रभाव दिखाएगा।
आज का मानव अपने निजी स्वार्थों को पूरा करने के लिए जाने अनजाने इस पृथ्वी का बहुत सा अहित भी कर रहा है। आज हालत यह हो चुके हैं कि भूमि में नदियों का जल भी दूषित हो चुका है, वायुमंडल में भी भारी मात्रा में प्रदूषण फैल चुका है तथा कल कारखानों से निकला हुआ जहरीला धुआं वातावरण में फैलकर समूची मानव जाति, पशु पक्षियों और जीव-जंतुओं के लिए अस्तित्व के लिए खतरा पैदा कर रहा है। जिससे अंबर में भी स्थित ब्लैक होल, (जिससे हमारी पृथ्वी की जहरीली किरणों से रक्षा होती है) में सुराग हो चुका है, जिसके कारण ऊपर ब्रह्मांड से कई तरह की जहरीले किरणे निकलकर पृथ्वी के ऊपर आ रही हैं, जिसके कारण बहुत से नुकसान समुचित मानव जाति, पशु पक्षी, जीव जंतु को उठाने पढ़ रहे हैं।
जंगल कराह रहे हैं | jangal karaah rahe hain
आज का मानव अपने व्यक्तिगत स्वार्थों को पूरा करने के लिए गैर जिम्मेदाराना रूप से जंगल को काट रहा है। उसके जंगल को काटने के कई कारण हैं।
जैसे आज भी संसार में करोड़ों लोग चूल्हे पर खाना बनाते हैं। चुल्हे को जलाने के लिए लकड़ी की आवश्यकता पढ़ती है और लकड़ी की जरूरत पूरा करने के लिए मानव अंधाधुंध तरीके से जंगलों का कटान कर रहा है। इसके कारण भी पर्यावरण पर भारी विनाशकारी प्रभाव देखने को मिल रहा है और धरती | earth पर पर्यावरण असंतुलन पैदा हो गया है, क्योंकि पेड़ हमें ऑक्सीजन प्रदान करते हैं तथा धरती से कार्बन डाई आक्साईड सोखते हैं। अगर दुनिया में कम पेड़ होंगे तो सामान्य सी बात है की वह कम ऑक्सीजन छोड़ेंगे तथा कम ही कार्बन डाइऑक्साइड नामक जहरीली गैस को सोख पाएंगे। जिसका परिणाम यह निकलेगा की धरती से कार्बन डाइऑक्साइड ज्यादा हो जाएगी तथा ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाएगी जिससे मानव जाति के अस्तित्व पर ही खतरा दिखाई पड़ेगा।
नदिया आहें भर रही है | nadiyan aahe bhar rahi hain
पिछले लगभग 100 वर्षों से पूरी दुनिया में भारी तथा जबरदस्त औद्योगिकरण हुआ है। कुछ देशों में तो बहुत ही ज्यादा औद्योगिकरण हुआ है। जैसे. संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, भारत, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, जापान आदि। इस औद्योगिकरण का दुष्परिणाम भी सामने आया है।
कल कारखानों द्वारा दूषित जल को शुद्ध ना करने के कारण उस जल को अक्सर नदियों में प्रवाहित कर दिया जाता है। कल कारखानों के दूषित पानी में अनेक जहरीले रसायनिक तत्व मौजूद होते हैं, जोकि नदियों के पानी में जाकर मिल जाते हैं। नदियों का जल लोग प्रायः पीने के लिए तथा कृषि के लिए इस्तेमाल करते हैं। दूषित पानी पीने से लोगों के स्वास्थ्य पर भारी असर पड़ता है तथा उन्हें अनेक बीमारियां घेर लेती हैं।
इसी प्रकार दूषित पानी को कृषि भूमि | agriculture land में इस्तेमाल करने से कृषि भूमि की उर्वरा शक्ति कम हो जाती है तथा फसलों में भी उक्त विषैले तत्व आ जाते हैं जोकि अंत में मानव शरीर में तथा पशुओं के शरीर में अन्य तथा चारे के रूप में पहुंच जाते हैं जोकि नुकसान का कारण बनते हैं।
इसके अलावा शहरों में सीवर की लाइनों का गंदा पानी भी नदियों में छोड़ा जाता है। आमतौर पर भारत में भी इस गंदे पानी के ट्रीटमेंट के साधन बहुत ही कम है तथा भारत की नदियां जबरदस्त तरीके से प्रदूषित हो चुकी है। भारत की प्रमुख नदियां गंगा और यमुना इसका ज्वलंत उदाहरण है। केंद्र सरकार तथा राज्य सरकार द्वारा अरबों रुपए नदियों की सफाई के लिए खर्च कर दिए मगर यह समस्या आज भी वैसे ही मुंह बाय खड़ी है तथा इसका कोई हल अभी तक दूर-दूर तक होता हुआ दिखाई नहीं पड़ता।
अंबर सिसक रहा है | Ambar sisak raha hai
विश्व मैं वर्तमान समय में जबरदस्त औद्योगिकरण हुआ है। नित्य प्रतिदिन प्रत्येक देश में कल कारखाने लग रहे हैं। उक्त कल कारखानों द्वारा भारी मात्रा में जहरीला धुआं आसमान में छोड़ा जा रहा है जोकि हमारे आसमान पर छा गया है, इसके अतिरिक्त विश्व में करोड़ों लोगों द्वारा खाना बनाने के लिए इंधन के रूप में लकड़िया जलाने के कारण भी पर्यावरण को भारी क्षति पहुंच रही है।
दुनिया में करोड़ों वाहन भी है जोकि पेट्रोल तथा डीजल से चलते हैं, पेट्रोलियम पदार्थों की जलने के कारण भी जहरीला धुआं आसमान में इकट्ठा हो जाता है जोकि पूरे ही वायुमंडल को दूषित कर देता है। अनेक देशों में धान तथा गन्ने की फसल को उठाने के बाद धान की पराली तथा गन्ने की पतियों तथा खोई मे आग लगा दी जाती है, जिससे भारी मात्रा में धुआं वायुमंडल में इकट्ठा हो जाता है। लोगों को इससे स्वास्थ संबंधित बीमारियां भी हो जाती है।
भारत में भी प्रातः हर साल हम पंजाब तथा हरियाणा से धान की पराली से लगी आग के धुएं को दिल्ली की तरफ आते हुए देखते हैं, जिससे दिल्ली में प्रदूषण का स्तर अत्यधिक बढ़ जाता है तथा लोगों को सांस लेने संबंधी बीमारियां तथा दमे की बीमारियां आदी हो जाती है। इसके अतिरिक्त आसमान में व्यापक रूप से जहरीले धुएं के इकट्ठा होने से वर्षा के ऊपर भी इसका प्रभाव पड़ता है। तथा ओजोन की परत में छेद भी हो गया है जोकि दुनिया में मानव सभ्यता के लिए चिंता का कारण है। इस प्रकार हम देखते हैं की अंबर भी सिसक रहा है।
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