वर्तमान समय में रोजगार की तलाश में गांव वाले भी शहरों की तरफ व्यापक स्तर पर पलायन कर रहे हैं, क्योंकि शहरों में उद्योग धंधे काफी मात्रा में मौजूद होते हैं जोकि आमतौर पर गांव में नहीं होते, इसके अतिरिक्त बच्चों की पढ़ाई के लिए उच्च कोटि के विद्यालय, इलाज के लिए अच्छे अस्पताल आदि सब बड़े शहरों में ही देखने को मिलते हैं। हर इंसान अपने बच्चों को अच्छे जिंदगी देना चाहता है। इसी ख्वाबों के साथ वर्तमान समय में ग्राम से शहर की तरफ व्यापक रूप से पलायन हो रहा है तथा शहरों में भी जनसंख्या के अत्यधिक दबाव के कारण दबाव बढ़ता जा रहा है।
मेरी भैंस को डंडा क्यों मारा वह खेत में चारा चरती थी, तेरे ..... का वो क्या करती थी | Meri bhains Ko danda kyon mara, vah khet mein chara charati. tere ..... ka vo kaya karti thi
आज मैं अपनी बायोग्राफी | Biography में एक सच्ची घटना को विस्तार से बताऊंगा।
journey of life | जीवन के सफर में, आज से बहुत वर्षों पहले की बात है जब मैं बच्चा हुआ करता था तथा हम लोग जंगल के किनारे बसे एक अत्यंत ही पिछड़े हुए गांव में रहते थे। गांव में मूलभूत सुविधाओं का अभाव था तथा घर में लाइट भी नहीं होती थी। हमने अपने पढ़ाई भी लालटेन की रोशनी में की थी। हमारे पास कुछ खेती की जमीन थी जिस पर खेती किया करते थे। गांव के लोग पशुपालन करते थे और भैंस पालन से कमाई भी होती थी। dairy farming business गांव में अच्छा फलता फूलता है। गांव में लगभग सभी के पास दुधारू पशु होते थे, murra bhains को ज्यादा दूध देने वाली भैंस माना जाता था। जिनका दूध परिवार में बड़े ही मन से सभी प्राणी पीते थे।
मगर इस दूध को पीने के लिए बच्चों को बहुत ही ज्यादा मेहनत करनी पड़ती थी। उन्हें पालतू गाय और भैंस को कई कई घंटे तक खेतों में घास को चराने के लिए ले जाना पढ़ता था। हमारा भी हाल कुछ ऐसा ही था, स्कूल की छुट्टी के बाद घर में खाना खाने के बाद हमें भी अपनी भैंस को चराने की लिए खेतों में ले जाना पड़ता था।
गांव में बच्चों ने अपनी सुविधा के लिए एक नया प्रयोग करना सीख लिया था, वह बच्चे आराम से भैंस के ऊपर बैठ जाते थे तथा भैंस आराम से घास चरती रहती थी। भैंस के ऊपर बैठने से बच्चों को इतनी खुशी मिलती थी जितना आजकल के बच्चों को हेलीकॉप्टर में बैठकर भी नहीं मिलती।
सर्दियों का मौसम था। दिल्ली से मेरे मौसेरे भाई राजेश दुआ भी हमारे घर में गांव में कुछ दिनों केेे लिए आया हुआ था। वह मुझसे तीन चार साल बड़े थे। हम लोग आज भी उनको प्रेम से तथा इज्जत से वीर जी कहकर बुलाते हैं। एक एक दिन मैं अपने स्कूल से पढ़ाई कर कर वापस आया तथा खाना खाकर लगभग आधे घंटेेे तक आराम करने के बाद अपनी भैंस को खोल कर उसको घास चराने के लिए खेतों में ले गया तथा गांव के अन्य बच्चों के साथ ही मैं भी अपनी भैंस पर बैठकर सवारी करने लगा। भैंस भी बिना किसी विरोध के आराम से घास को चर रही थी । बड़ा ही आनंद आ रहा था, लगभग समय 5:30 बजे का हो चुका थाा। सूर्य अस्त होने को तैयार था, मगर मैं भी अन्य बच्चों के साथ बेफिक्र होकर आराम से भैंस के ऊपर बैठकर सवारी कर रहा था।
इतने में मेरा मौसेरा भाई जो कि दिल्ली से आया था मुझे ढूंढते हुए वहां पर आ पहुंचा। उसने यह अलौकिक नजारा पहली बार देखा था, हंसते हंसते उसकेे पेट में बल पड़ गए और मेरेे मौसेरे भाई राजेश दुआ के दिमाग में मस्ती के साथ एक शैतानी आईडिया भी आ गया उसने वही कहीं से पढ़ा हुआ एक डंडा उठाया और भैंस को मारना शुरू कर दियाा, परिणाम स्वरूप भैंस को थोड़ा गुस्सा आ गया क्योंकि यह उसके लिए भी एक अनचाहा अनुभव था। भैंस बुरी तरह से बोखला गई और वह दौड़ने लगी। डर और बौखलाहट के मेरी घिग्घी बंध गई और मैं बेतहाशा शोर मचाकर अपने भाई से यह सब करने को मना करने लगाा, मगर उसको यह सब करनेे में भरपूर आनंद आ रहा था। भैंस तेजी से भागने लगी और अंत में वही हुआ जिसका मुझे डर था। बैलेंस बिगड़ने के कारण मैंं भैंस की पीठ से जमीन पर धड़ाम से गिर पड़ा और सभी बच्चे ताालियां बजाकर हंसने लगे।
आज भी वह घटना याद करके मुझेे हंसी आ जाती हैैै।
और मैं अपने भाई से आज यह फिर पूछना चाहूंगा की मेरी भैंस को डंडा क्यों मारा वह खेत में चारा चरती थी।
: आज की यह पोस्ट अपने मौसेरे भाई श्री राजेश दुआ को समर्पित
प्रश्न: qurbani ka janwer कौन सा होता है?
उत्तर: bakra qurbani, bhains ki qurbani, ut ki qurbani आदि के बारे में अक्सर सुना जाता है। qurbani bakra भी सुना जाता है।
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