आज मैं किस्से कहानियों की बजाए अपनी biography में जिंदगी में हुए सच्चे प्यार | Holi love को बताऊंगा, मोहब्बत की कसम यह वास्तव में ही एक निस्वार्थ, निशब्द और पूरी तरह से पवित्र प्यार था।
इस प्यार में कभी भी प्रेमी और प्रेमिका की आपस में मुलाकात नहीं हुई और कभी भी कोई बात नहीं हुई, उसके बावजूद उन दोनों में अटूट, गहरा और पावन प्यार था। सालों तक मात्र दिन में कुछ सेकंड तक ही नजर से नजर दिन में एक बार मिलती थी, वह भी कई बार कई कई दिन तक नहीं मिल पाती थी। कभी ना मिलने और कभी बातचीत ना होने के बावजूद भी उनके प्यार को केवल वह दोनों ही समझ सकते थे। दुनिया में उन दोनों के अलावा किसी को भी इस मासूम और सच्चे प्यार का कभी भी पता नहीं चल पाया।
हां आज मैं दुनिया के सामने इस बिल्कुल सच्चे प्यार के बाबत बताऊंगा । mohabbat ki kasam यह 100% सच है और यह किसी और की नहीं बल्कि मेरी सच्ची प्रेम कहानी है | my true love story.
दोस्तों,
यह बात बहुत ही वर्षों पहले की है | many years ago जब मैं किशोरावस्था मे था। मैंने उस वर्ष हाई स्कूल पास किया था। हम लोग एक गांव में रहते थे तथा हमारा एक मध्यम वर्गीय परिवार था। हमारा गांव जंगल के किनारे बसा हुआ था। उस समय में, हाई स्कूल पास करके भी मां बाप चाहते थे की अपने बच्चे को कोई रोजगार करवा दिया जाए।
हमारी यमुनानगर की सीमा से लगता हुआ जोकि हरियाणा में है, में एक प्लाट जिसमें एक छोटी सी दुकान थी और पीछे एक कमरा भी था, कुछ खुला एरिया भी था पूर्व में ही किसी समय हमारे पिताजी के द्वारा लिया हुआ था। वह जगह वर्तमान में हमारे गांव से लगभग ढाई सौ किलोमीटर दूर थी।
एक दिन मेरे पिताजी द्वारा मुझे बताया गया कि कल हमने यमुनानगर जाना है और मुझे वहां पर अकेले रहकर ही दुकान करनी हैं, उस वक्त मेरी आयु लगभग 15 वर्ष थी तथा उससे पहले मैं कभी भी जीवन में अकेला घर से बाहर नहीं गया था। अगले दिन पिताजी मुझे साथ लेकर रात को ट्रेन से यमुनानगर के लिए निकल पड़े। अगले दिन सुबह हम यमुनानगर पहुंच गए, मैं उस जगह पर जीवन में पहली बार आया था तथा हर कोई मेरे लिए अजनबी था। कहीं ना कहीं मैं अंदर से घबरा भी रहा था कि मुझे अब अकेले यहां रहना पड़ेगा। पिताजी मुझे लेकर अपने प्लाट पर पहुंचे छोटी सी दुकान थी तथा पीछे एक मिट्टी की दीवारों से बना हुआ छोटा सा कमरा था। ना ही लाइट थी और ना ही पानी था, रात को मोमबत्ती जलाकर या लालटेन से लाइट मिलती थी। पानी दुकान से काफी दूर सरकारी टंकी से वाल्टी भरकर लाना पड़ता था। पिताजी 2 दिन वहां पर मेरे साथ रहे, इस दौरान उन्होंने एक नई साइकिल खरीद कर मुझे दी तथा उस वक्त कुल जमा पूंजी 1570/ ₹ का समान जोकि थोड़ा-थोड़ा करियाने का था, को खरीद कर छोटी सी दुकान पर लगा दिया और मुझसे दुकान संभालने के लिए कह कर 2 दिन बाद ही वहां से चले गए।
मेरे लिए यह कच्ची उम्र में बहुत बड़ी विपत्ति से कम नहीं था। उससे पहले मैं कभी भी अकेला नहीं रहा था तथा मुझे ना खाना बनाना आता था और ना ही चाय बनाने आती थी। रो-रो कर जैसे तैसे खुद को ढांढस बंधाकर मैंने जैसे तैसे करके खुद को संभाला और धीरे धीरे उस अजनबी माहौल में खुद को ढालने की कोशिश करने लगा। कई बार ठोकरे लगी, बहुत कुछ सहना पड़ा। जिंदगी में कई मुसीबतों के कड़वे डोज लेने पड़े, खुद ही हंसता, खुद ही रोता और खुद ही खुद को दिलासा देता। जिंदगी धीरे धीरे आगे सरकने लगी तथा कुछ दिनों बाद मैंने अपना आत्मबल पा लिया, तथा दुनिया में रहकर दुनिया से लड़ना आ गया।
अब मैं सुबह 5:30 बजे से दुकान खोल कर रात्रि 11:00 बजे तक अपना कार्य करने लगा। धीरे धीरे कुछ दोस्त भी बन गए, जोकि मुझे सहारा देते तथा मुझे खुश रखने का प्रयास करते तथा मेरे सुख-दुख का भी सहारा बनते। समय बीतने के साथ मेरी मेहनत रंग लायी और मैंने दूकान से पैसे कमाकर कच्ची दूकान तोड़कर दोबारा पहले से बड़ी पक्की दूकान बनायी तथा बिजली का कनैक्शन तथा पानी का नल भी लगवा लिया
Meri apni sacchi love story jise main kabhi bhi kisi ko Bata nahin Paya | मेरी अपनी सच्ची प्रेम कहानी जिसे मैं कभी भी किसी को बता नहीं पाया
अकेले जीवन काटना किसी आपदा से कम नहीं होता। बहुत मुसीबतें झेलते हुए मैं अपना समय व्यतीत कर रहा था।
मगर अनायास ही मेरे वीरान जिंदगी में कुछ खुशी के पल आ गए और जिसने मेरी जिंदगी को बदल कर रख दिया। मेरे दुकान के सामने ही सड़क थी, जिससे बच्चे अपने स्कूल तथा कालेज साइकिल से जाया करते थे।
उन बच्चों में दो लड़कियां भी प्रतिदिन अपनी साइकिल से स्कूल जाया करती थी। दोनों ही सहेली थी। उनमें से एक लड़की जिसका सही नाम तो मैंने आज तक जीवन में किसी को भी नहीं बताया मगर आप लोग समझने के लिए उसका नाम एस मान लो , भी थी।
वह लड़की देखने में बहुत सिंपल थी मगर नेचुरल ब्यूटी की धनी थी। लंबे उसके बाल थे जिसको वह चोटिया बनाकर रखती थीं।
स्कूल जाते हुए जब मैंने उसको पहली बार देखा तो देखता ही रह गया। इतना पवित्र चेहरा और इतनी मासूमियत मैंने आज तक जीवन में किसी भी लड़की की के चेहरे पर नहीं देखी है। वह लड़की एस हमेशा ही अपनी नजर झुका कर मेरे दुकान के सामने से निकलती थी। उसकी एक झलक पाने के लिए सुबह के वक्त स्कूल जाने के समय बाहर कुर्सी डालकर बैठा रहता था। उसकी एक झलक पाकर ही मुझे ऐसा महसूस होता था कि जैसे मुझे सारे जहां की खुशी मिल गई। उसने कभी भी मुझे 2 सेकंड से ज्यादा नहीं देखा, मात्र एक बार कुछ पल के लिए ज्यादा से ज्यादा 2 सेकंड के लिए उसकी पलकें भी मुझे देखने के लिए उठती थी और तुरंत ही उसकी नजरें झुक जाती थी, लेकिन वह चंद लम्हे मेरी जिंदगी का सबसे खूबसूरत पल बन जाता था, कई वर्षों तक यह सिलसिला लगातार चलता रहा और उसने अपना ग्रेजुएशन भी पूरा कर लिया!
हद तो यह थी कि मुझे उस लड़की का नाम भी पता नहीं था, कभी भी मुलाकात नहीं हुई, कभी भी कोई बात नहीं हुई , लेकिन वह लड़की भी जब 2 सेकड के लिए पलके उठा कर मुझे देखती थी तो उसके चेहरे की रंगत भी तुरंत ही बदल जाती थी तथा उसका चेहरा गुलाबी हो जाता था चाहत दोनों तरफ से थी बहुत ज्यादा थी, पवित्र भावना से सच्चा प्यार था, लेकिन एक ऐसा प्यार जिसको कोई भी अपनी जुबान से कभी भी कह नहीं पाया!
बाद में कुछ वर्षों तक उसका बड़ा भाई उसको अपने मोटरसाइकिल से कॉलेज छोड़ने तथा ले जाने लगा मगर हमारा वह देखने का सिलसिला हमेशा ही चलता रहा चलता ही रहा। दोनों ही मजबूर से थे, दोनों ही बेजुबान थे और दोनों की ही अपनी अपनी मजबूरियां थी।
कॉलेज की छुट्टियां पड़ गई और उसने कॉलेज जाना बंद कर दिया। मैं जल बिन मछली की तरह तड़पने लगा। दिन प्रतिदिन ही मेरी हालत खराब होती चली गई ....।
मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं?
हालात यहां तक पहुंच गए कि मैं दीवारों में अपना सिर टकराने लगा। मैंने सिगरेट पीनी शुरू कर दी और कुछ दिनों में ही मैं चैन स्मोकर बन गया। मगर मेरे हालात बद से बदतर होते चले गए।
7 जून 1993 का दिन था । उस दिन सोमवार था। मैंने उस दिन अपनेेे आराध्य भगवान भोलेनाथ का व्रत रखा हुआ था। मगर मैं मानसिक तौर पर बहुुत ही ज्यादा परेशान था। मुझे बड़ी शिद्दत से ही अपनेेे प्यार यानी कि एस की याद आ रही थी। शाम लगभग 5:00 बजे मेरी बेचैनी हद से ज्यादा बढ़ गई। मैं दुकान बंद कर पीछे अपने कमरेेे में गया गया और शिव जी भगवान की फोटो के सामने झुक कर अपना शीश नीचे किया और मन से भोलेनाथ से प्रार्थना की कि मुझेे आज मेरे प्यार से मिलवा दो। मेरी आंखों से आंसू बह रहे थे। 5 मिनट प्रार्थना करते के बाद मैंं अपने कमरेे में ताला लगाकर बाहर निकल आया। ओर चमत्कार हो गया, मुझ पर प्रभु भोलेनाथ की असीम कृपा हो गई।
मुझे सड़क पर चलते हुए 5 मिनट भी अभी नहीं हुए थे कि सामने मुझे सड़क किनारे अपनी जान मैडम एस आती हुई दिखाई दी। उसके साथ एक अन्य औरत भी थी। उस पल का वर्णन मैं चाह कर भी नहीं सुना सकता, ऐसा लगा जैसे मुझे आज ईश्वर ने नई जिंदगी दे दी हो। मन और मस्तिष्क को इतनी ठंडक और राहत मिली जितना कि एक इंसान कल्पना भी नहीं कर सकता।
Waqt ne ham donon premiyon ko hamesha ke liye alag kar Diya | वक्त ने हम दोनों प्रेमियों को हमेशा के लिए अलग कर दिया
मेरे शांत जीवन में फिर एक नया तूफान आने वाला था, जिसका मुझे हरगिज़ भी अंदेशा नहीं था। ऐसा भी कह सकते हैं कि विनाश काले विपरीत बुद्धि। अच्छी खासी सही जिंदगी चल रही थी। मैं वहां यमुनानगर में काफी समय से अकेला था और मैंने यमुनानगर छोड़कर अपने गांव में आने का फैसला कर लिया और वहां की जमीन और दुकान को बेच दिया। जिसका मुझे आज भी बहुत ही ज्यादा पछतावा हैै। अगर मैं ऐसा नहीं करता तो शायद मेरी जिंदगी कुछ और ही होती।
ठीक-ठाक कारोबार था मेरा उस वक्त, मगर कुछ पीछे परिवार के हालात ऐसे थे कि मुझे वहां की जमीन बेचनी पड़ी।
यमुनानगर की दुकान बेचने से कुछ दिन पहले ही मेरी जान मैडम एस के छोटे भाई का मेरी दुकान पर आना जाना शुरू हो गया था। मुझे पता चल गया था कि वह मेरी प्रेमिका का छोटा भाई हैै। लिहाजा मेरा उसके ऊपर अत्याधिक लगाव तथा प्यार आना स्वाभाविक था। आने के चंद दिन पहले ही वर्षों के बाद मुझे अपनी प्रेमिका का वास्तविक नाम पता चला। उसके भाई के दुकान पर आने पर मैं उसको अपने पास बिठाकर बहुत सारी बातें किया करता था तथा उसके परिवार में के बारे में पता करता रहता था। बातों ही बातों में उसने बताया कि उसकी बहन को गाने सुनना, पुराने गाने सुनना बहुत पसंद है। यह मेरी भी पसंद थी।
यमुनानगर छोड़ने से पहले मैंने अपने उस दोस्त को बहुत सारी टेप रिकॉर्डर की कैसेट गिफ्ट में दिए, जिसमें से एक कैसेट लता मंगेशकर के गानों की भी थी। कैसेट के बाहर कवर पर गानों की लिस्ट बनी होती हैै, जिसमें वह गाने लिखे होते हैं जो उस कैसेट के अंदर होते हैं। उस कैसेट के अंदर अन्य गानों के अलावा 2 गाने मुख्य तौर पर थे। पहला गाना था जाने क्यों लोग मोहब्बत किया करते हैं और दूसरा गाना था ना तुम बेवफा हो ना हम बेवफा हैं मगर क्या करें अपनी राहें जुदा है।
मैंने दोनों ही गानों पर पेन से टिक का निशान लगाया और एक छोटा सा दिल पेन से बना कर उसके अंदर एस लिखकर उसको दे दिया तथा उसके बाद मुश्किल से एक हफ्ते बाद ही मुझसे यमुनानगर हमेशा के लिए छूट गया। कह सकते हैं कि ......
लकीरों से चूक गए वरना इश्क हमारा कमाल का था।
हुई पहली मुलाकात और उसके हाथ का बना गाजर का हलवा खाने को मिला।
यमुनानगर छूट जाने पर मन काफी विचलित रहने लगा। कहीं पर भी मन नहीं लगता था। अंदर ही अंदर बहुत गहराई तक अपने दिल में एक तूफान से समेटे मैं खामोशी से अपनी जिंदगी व्यतीत कर रहा था और कहीं ना कहीं घुट घट कर मर रहा था।
महीनो बाद मैंने एक दिन अचानक ही 1 दिन के लिए यमुनानगर जाने का फैसला कर लिया और मैं दूसरे दिन ट्रेन से यमुनानगर पहुंच गया। शाम के समय था, सर्दियों के दिन थे, मैं पूरी हिम्मत मन में मन में समेटे सीधा अपने प्यार, अपनी जिंदगी के घर में पहुंच गया।
बहुत बड़ी हवेली थी क्योंकि वह लोग काफी संपन्न भी थे। उनकी खेती बाड़ी भी थी। मैंने दरवाजे का कुंडा खटखटाया तो उसकी मम्मी ने दरवाजा खोला। मैंने उनके पैर छुए तथा आदर से उनका अभिवादन किया तथा उनको बताया की मैं वहां से आया हूं तथा आपके बेटे से मिलने आया था। वह बहुत खुश हुई और मुझे घर के अंदर ले गई और बड़े ही प्यार से चारपाई पर बैठाया।
घर पर ही मैडम एस व उसका छोटा भाई भी मौजूद था, जिससे मेरा पूर्व में ही काफी मेलजोल हो गया था। मुुझे देख कर बहुत खुश हुआ। उसकी मम्मी ने मुझे पानी ला कर दिया, लगभग 10 मिनट से हम बातचीत कर रहे थे और मेरी प्यासी नजरें अत्यंत ही व्याकुल होकर अपने प्यार को तलाश कर रही थी। अचानक ही एक चमत्कार हो गया और ऐसा महसूस हुआ जैसे आज पूरा ब्रह्मांड अपनी जगह रुक गया हो। मेरी भी नजरें और सांसे जहां थी वहीं थम गई। कमरे का दरवाजा खुला ओर मेरी जिंदगी मैडम एस मेरे लिए गाजर के हलवे के प्लेट व चाय का कप लिए मेरे सामने खड़ी थी। वही खामोशी, वही झुकी नजर, वही मासूमियत और चेहरे पर डरी हुई और सहमी हुई वही अनजानी सी घबराहट। चंद सेकंड के लिए उसने नजरें उठाई और मेरी तरफ देखा, चेहरे पर उसके भी असीम प्यार और अपनापन और चाहत झलक रही थी। आंखों की आंखों से हुईं मुलाकात में हमने आपस में ना जानें कितनी ही बातें कर ली और कितने गिले-शिकवे भी कर लिए।
उस गाजर के हलवे की मिठास व सुगंध तथा चाय का स्वाद आज भी मुझे बहुत याद आता है। 10-15 मिनट बैठने के बाद ही मैं उठ खड़ा हुआ और वापस आने के लिए उनका अभिवादन किया। उन्होंने कहा कि कि मैं रात को वहीं रुक जाऊं तथा खाना खाकर ही जाऊं, मगर अब मुझसे रुका नहीं जा रहा था और मैं उनको अलविदा कह कर वहां से आ गया। इस बात को वर्षों बीत गए हैं। मगर दिल में अब भी धड़कन उसी के नाम की होती है।
बीते हुए वक्त के साथ मैंने दोबारा पढ़ाई शुरू कर दी थी तथा कई डिग्रियां हासिल की। जिंदगी में अनेक उतार-चढ़ाव देखने को मिले। मगर आज भी जब कभी अकेला बैठता हूं तो कहीं ना कहीं मुझे अपने उस सच्चे प्यार की याद तड़पा ही जाती है।
और अंत में बस इतना ही कहूंगा......
जिनका मिलना नहीं होता मोहब्बत में, उनसे मोहब्बत भी कसम से कमाल की होती है।
मोहब्बत की कसम.....
Jinka Milana nahin hota Mohabbat mein,
Unse Mohabbat bhi Kasam Se Kamal ki hoti hai.
(कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन)
👉 आज की यह पोस्ट मेरे दिल की धड़कन,
मेरा सच्चा प्यार मैडम एस को समर्पित।
"बहुत संभाल कर खर्च करते हैं तेरी यादों की दौलत.....
"आखिर एक उम्र गुजारनी है अब इन्हीं की बदौलत....।
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